सच्चा गुरु
कुछ ही वर्षों पुरानी बात है दीनदयाल नाम के एक सेठ अजमेर में रहते थे एक दिन उन्होंने एक पुस्तक में पढ़ा गुरु के बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं सेठ ने निश्चय किया कि एक ऐसे गुरु की तलाश की जाए जो बहुत ज्ञानी हो बहुत से गुरुओं के पास गए उन्हें जांचा परखा पर कोई खरा न निकला परन्तु तलाश का अंत न हुआ
काफी दिन बीत गए सेठजी परेशान रहने लगे एक दिन सेठानी ने कहा," आप परेशान क्यों होते हो आप अपना काम करो यह काम मुझपर छोड़ दो जो मिला करे उसे मेरे पास भेज दिया करो " सेठजी सहमत हो गए एक झंझट समाप्त हुआ सेठानी ने पिंजड़े में एक कौवा पाला जो भी महात्मा वहां आते,उनसे यही कहती - "देखिये मेरा पाला कबूतर अच्छा है न"
अनेक संत आए सभी कहते , " कबूतर कहाँ है कौआ है परन्तु सेठानी अपनी बात पर अड़ी रहती जब वे टस से मस नहीं होती तो संत क्रोध में भरकर उलटी - सीधी बातें कहते और वापस चले जाते
सेठानी ने हार नहीं मानी यही क्रम चलता रहा बहुतेरे संत आए और चले भी गए कोई सेठानी की परीक्षा पर खरा नहीं उतरा जो छोटी -छोटी बातों पर क्रोधित हो जाए वह संत कैसा ! जो संत नहीं वह गुरु योग्य नहीं
एक दिन वयोवृद्ध संत आए सत्कार करने के उपरांत सेठानी ने वही कौआ-कबूतर का किस्सा शुरू कर दिया
वे संत आवेश में नहीं आए कौए और कबूतर का अंतर समझने लगे सेठानी को न समझना था न वे समझी उनके न समझने पर संत इतना कहकर चले गए , "बेटी हठ मत करना तथ्य का पता लगाना कोई सर्वज्ञं नहीं हमसे भी और आपसे भी भूल हो सकती है सत्य को समझने के लिए मन के द्वार खुले रखने चाहिए " वे हँसते हुए चल दिए न क्रोध था और न आवेश , न मानापमान का भाव ही
सेठानी संत को द्वार से वापस लौटा लाई नमन किया और उनके चरणों के निकट बैठकर बोली -"जैसा चाहती थी ,वैसा ही आप में पाया कृपया हमारे परिवार के गुरु का उतरदायित्व ग्रहण करे " घर के सभी लोग उनके शिष्य बन गए